जब पर हों ,पर परवाज़ ना हो
जब सुर हो ,पर साज़ ना हो ,
हो हिम्मत पर आगाज़ ना हो
तब दर्द बहुत ही होता है।
जब हुनर खड़ा हो साथ संग
पर बढ़ना आगे लगे जंग ,
जब पीछे खींचे अपने ही
तब दर्द बहुत ही होता है।
जब अँधियारे सा हो प्रभात
हो पग -पग गिरना आम बात ,
हो, समझाना खुद को मुश्किल
तब दर्द बहुत ही होता है।
जब जीवन हो एक बंदी सा
और कारागृह में द्वार न हो,
हो सन्नाटा तन्हाई का
तब दर्द बहुत ही होता है।
न मिले उचित सम्मान कभी
इन अरमानों को जान कभी ,
बेजान पड़े अरमानो को लेआगे बढ़ना होता है
तब दर्द बहुत ही होता है।
©सुप्रिया सिंह
चित्र : गूगल साभार
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