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Showing posts from February, 2019

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माँ

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तुम्हे आँधियों में सम्भाला है उसने, अपने भरोसे ही पाला है उसने, लुटा देगी सबकुछ, अदा क्या करोगे, "माँ " है वो साहब दया क्या करोगे। 🙏            -supriya singh

समझ

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खिलखिलाहट न जाने कब मुस्कराहट में बदल गई , मस्ती मज़ाक, न जाने कब अदब में बदल गए।  चँहकते दौड़ लगाना संभल कर चलना हो गया  अपने ख्यालों में खोए रहना बांवरापन सा हो गया।  जो कभी छोटे -छोटे से सपने थे , आज पर्वतों से ऊँचे और कठिन लगने लगे।  जहाँ बिन कहे ही ज़रूरतें पूरी हो जाया करती थीं  वहाँ ज़रा-ज़रा सी ख़्वाहिशों पे रोना मचने लगा।  बेफिक्र अपनी बात कह देना , अब सोच समझ कर बोलना हो गया.  न जाने कब सबके साथ प्यार से रहने की सीख , सोच समझ कर रिश्ते बनाने में बदल गई।  सब बेपरवाह ज़ाहिर कर देना , घुट- घुट कर  जीना हो गया।  बिन बताए मन के काम कर लेना , आज मन मसोस कर रह जाने सा हो गया है।  बस यूँ  ही खुद को गवाँते,भारी कीमत चुकाते, न जाने कब हम समझदार हो गए।                                ©सुप्रिया सिंह                 

हौंसला

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 मिली जो मुझे दुश्वारियों की गली , चल पड़ी जिन पर मै,करके सब कुछ फ़ना।  कहते हैं वो कि खोनाऔर पाना ही तो है ज़िन्दगी,  लगा मिल जाए शायद मुझे कुछ नया।  वक़्त-ए-सितम पर जो मरहम करे , बिखरे ख्वाबों को दे मेरे फिर से सजा।  जो चले संग मेरे दूर तक बस यूँ ही , ना रखे हिसाब गुज़रते वक़्त का।  ढूंढा,देखा उसे हर तरफ,हर जगह, पर ऐसा तो कोई ना  मिला सका।  बैठे -बैठे यूँ ही बस ख़याल आ गया , मिली हैं जो फ़ुरसतें,उठा लूँ कुछ फ़ायदा।    झांँक लूँ ख़ुद के भीतर,जो अब तक ना  किया, जो झाँका तो,टूटा बिखरा-सा मिला सब वहाँ।   इक दफ़ा ,खुद सम्भलने की कोशिश न की , रोज़ अगली ही मै उठ खड़ा हो गई।   छोड़ कर राह तकना, कर दिया अब शुरू  काम खुद को सँवारने और बेहतर करने का, उस दिन यूँ लगा कि हाँ ,था वो यहीं  मेरे भीतर कहीं ,थी रही खोज जिसको यहाँ से वहाँ , था नया-सा वो बस ,कुछ बढ़ा सा वो बस  कुछ और नहीं   हौंसला   था मेरा।  ©®सुप्रिया सिंह 

मनमर्ज़ियाँ

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          आखिर एक दिन समझ और अनुभवों में विश्वास दिलाने वाले  संस्कारों को धकेलते हुए ,उसने कह ही दिया।  यह जो मेरे पल हैं ना , अपनी तरह से जीऊँगी इन्हे मै।  और क्या  पता ,लोगों के पुराने अनुभवों से मेरा इत्तेफाक हो ना  हो।  हो सकता है ,खुशियाँ मिलें उस राह पर मुझे  जिस राह पर तुमने  काँटे चुने।  तो कर लेने दो ना मुझे अपनी मनमर्ज़ियाँ , जो तुम्हारी नज़र में आज भी गलतियाँ हैं।  ©®सुप्रिया सिंह                          

Dreamy reality

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Deep in her thoughts, she was dreaming about him. A sudden tap woke her up and now  Again, She is in the arms of her dream but In REAL.                     ©® Supriya Singh