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माँ

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तुम्हे आँधियों में सम्भाला है उसने, अपने भरोसे ही पाला है उसने, लुटा देगी सबकुछ, अदा क्या करोगे, "माँ " है वो साहब दया क्या करोगे। 🙏            -supriya singh

वो बचपन

वो हँसता वो खिलखिलाता सा बचपन,बेबात ही मुस्कुराता वो  बचपन ,
वो ड़र -ड़र  के सीखने में,गिरता कभी लड़खड़ाता सा बचपन। 

रेत के इग्लू बनाता वो बचपन, मोहल्ले में हुल्लड़ लगाता वो बचपन ,
हरदम ही अपनी चलाता वो बचपन,न मानो तो रूठ जाता वो बचपन। 

बरसाती पानी के छींटे उड़ाता , कुछ मटमैला,कुछ भीगा-सा बचपन ,
माटी में खेले,और खाने को माटी, लोगों से नज़रें बचाता वो बचपन। 

 तितली पकड़ने कि कोशिश में ,वो उड़ता दौड़ लगाता-सा  बचपन,
छुपम-छुपाई ,पकड़म-पकड़ाई मनमाने खेल खिलाता वो बचपन। 

 त्योहारों की मिठाई देख ललचाता,मिलने कीआस में चक्कर लगता वो बचपन ,
छत से पानी के रंगीन  गुब्बारे फोड़े,बचने को खुद झट से नीचे बैठ जाता वो बचपन। 

छुप-छुप के चीज़ें चुराता कभी,पकड़े जाने पर गुमसुम सा डाँट खाता वो बचपन ,
आँखों से दो मोती गिरा कुछ ही देर में,सब भूल जाता वो मस्तमौला सा बचपन। 

न माने किसी की वो ज़िद्दी सा बचपन ,अपनी ही  चलाए  वो पिद्दी सा बचपन ,
न रूठने ही दे नादानियों से अपनी,निश्छल मनोभाव वाला वो बचपन। 

वो बिन सोचे कुछ भी ,कहीं पर भी कहना ,अपना पराया कुछ ना समझना ,
वो नादान ,आतुर ,बेपरवाह सही झाँक लेता है भीतर से यूँ ही कभी ,मुझमे वो घटता जाता सा बचपन। 

                                                ©® सुप्रिया सिंह 



  





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