वह दर्द , दर्द का गश्त बड़ा ,उस नशे में था वह मस्त पड़ा
ना आगे ना पीछे कोई ,अपनी मस्ती में मस्त रहा।
जब जहाँ जी किया निकल दिया , ना पता उसे है परवाह क्या
जीवन के दिए आघातों ने , कर दिया उसे है सख़्त बड़ा।
अब राहों की दुश्वारियाँ भी, लगती हैं उसको अपनी सी
कष्टों की इतनी मार सही, ये कष्ट ही उसका ईश हुआ।
वह दर्द दुखों की कील चुभन , राहों की ठोकर और पतन
वह जीर्ण -शीर्ण जीवन उसका , है देने लगा आनंद बड़ा।
अब दुःख को ही सर्वस्व बना , अंतर्मन से सब भाव मिटा
अपने तन मन को वज्र बना , है संघर्षों की भेंट चढ़ा
है जागृत मन , उन्नत मस्तक जो डिगा नहीं आघातों से ,
जीवन के झंझावातों से ,पाता है खुद को प्रबल खड़ा।
वह दर्द ,दर्द का गश्त बड़ा ,उस नशे में है वह मस्त खड़ा।
©सुप्रिया सिंह
चित्र : गूगल साभार
Comments
आज मैं आपके ब्लॉग पर आया और ब्लोगिंग के माध्यम से आपको पढने का अवसर मिला
ख़ुशी हुई.
धन्यवाद आदरणीय.