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माँ

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तुम्हे आँधियों में सम्भाला है उसने, अपने भरोसे ही पाला है उसने, लुटा देगी सबकुछ, अदा क्या करोगे, "माँ " है वो साहब दया क्या करोगे। 🙏            -supriya singh

समझ

खिलखिलाहट न जाने कब मुस्कराहट में बदल गई ,
मस्ती मज़ाक, न जाने कब अदब में बदल गए। 
चँहकते दौड़ लगाना संभल कर चलना हो गया 
अपने ख्यालों में खोए रहना बांवरापन सा हो गया। 

जो कभी छोटे -छोटे से सपने थे ,
आज पर्वतों से ऊँचे और कठिन लगने लगे। 
जहाँ बिन कहे ही ज़रूरतें पूरी हो जाया करती थीं 
वहाँ ज़रा-ज़रा सी ख़्वाहिशों पे रोना मचने लगा। 

बेफिक्र अपनी बात कह देना ,
अब सोच समझ कर बोलना हो गया. 
न जाने कब सबके साथ प्यार से रहने की सीख ,
सोच समझ कर रिश्ते बनाने में बदल गई। 

सब बेपरवाह ज़ाहिर कर देना ,
घुट-घुट कर  जीना हो गया। 
बिन बताए मन के काम कर लेना ,
आज मन मसोस कर रह जाने सा हो गया है। 

बस यूँ  ही खुद को गवाँते,भारी कीमत चुकाते,
न जाने कब हम समझदार हो गए।  
                            
©सुप्रिया सिंह   
             

Comments

ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
Supriya Singh said…
धन्यवाद सर, आपका प्रोत्साहन महत्वपूर्ण है।
Unknown said…
बहुत खूब लिखा मोहतरमा अपने...👏👏👏👏💐

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