जब पर हों ,पर परवाज़ ना हो जब सुर हो ,पर साज़ ना हो , हो हिम्मत पर आगाज़ ना हो तब दर्द बहुत ही होता है। जब हुनर खड़ा हो साथ संग पर बढ़ना आगे लगे जंग , जब पीछे खींचे अपने ही तब दर्द बहुत ही होता है। जब अँधियारे सा हो प्रभात हो पग -पग गिरना आम बात , हो, समझाना खुद को मुश्किल तब दर्द बहुत ही होता है। जब जीवन हो एक बंदी सा और कारागृह में द्वार न हो, हो सन्नाटा तन्हाई का तब दर्द बहुत ही होता है। न मिले उचित सम्मान कभी इन अरमानों को जान कभी , बेजान पड़े अरमानो को लेआगे बढ़ना होता है तब दर्द बहुत ही होता है। © सुप्रिया सिंह चित्र : गूगल साभार ...
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