ऐसी लगी लगा दे मोहे ,रंग तेरे रंग जाऊँ प्रीत ओढ़ कर तेरी , सारा जग बिसरा ही जाऊँ। तू मै, मै तू होकर जोगी कुछ ऐसे रम जाएंँ दरस तेरे हों देख मुझे कर, एक नज़र हो जाएँ। दरस करे जो दो देहिन के, एक ही भेद बताए वह थी चरणों शीश नवाए वह, मंद-मंद मुस्काए। प्रेम भक्ति में डूब तरूँ जब ,पार तुझी में पाऊँ इक तेरी हो रह जाऊँ ,और ,बस तेरी धुनि लगाऊँ । जीऊँ तुझमे मगन रहूँ तन छोड़ तुझे ही पाऊँ छोड़ जगत के माया बंधन, प्रवाह मुक्त हो जाऊँ। रंग तेरा ,यूँ रहे संग ,के रंगीली कहलाऊँ बस रहे मुझे सायुज्य तेरा, मैं पावन होती जाऊँ। ©® सुप्रिया सिंह चित्र :गूगल साभार