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माँ

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तुम्हे आँधियों में सम्भाला है उसने, अपने भरोसे ही पाला है उसने, लुटा देगी सबकुछ, अदा क्या करोगे, "माँ " है वो साहब दया क्या करोगे। 🙏            -supriya singh

मनमर्ज़ियाँ


          आखिर एक दिन समझ और अनुभवों में
विश्वास दिलाने वाले  संस्कारों को धकेलते हुए ,उसने कह ही दिया। 

यह जो मेरे पल हैं ना , अपनी तरह से जीऊँगी इन्हे मै। 
और क्या  पता ,लोगों के पुराने अनुभवों से मेरा इत्तेफाक हो ना  हो। 

हो सकता है ,खुशियाँ मिलें उस राह पर मुझे
 जिस राह पर तुमने  काँटे चुने। 

तो कर लेने दो ना मुझे अपनी मनमर्ज़ियाँ ,
जो तुम्हारी नज़र में आज भी गलतियाँ हैं।

 ©®सुप्रिया सिंह

                    
    

Comments

बहुत ही खूबसूरत अल्फाजों में पिरोया है आपने इसे... बेहतरीन
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय भास्‍कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
Supriya Singh said…



धन्यवाद आदरणीय.

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