आखिर एक दिन समझ और अनुभवों में
विश्वास दिलाने वाले संस्कारों को धकेलते हुए ,उसने कह ही दिया।
यह जो मेरे पल हैं ना , अपनी तरह से जीऊँगी इन्हे मै।
और क्या पता ,लोगों के पुराने अनुभवों से मेरा इत्तेफाक हो ना हो।
हो सकता है ,खुशियाँ मिलें उस राह पर मुझे
जिस राह पर तुमने काँटे चुने।
तो कर लेने दो ना मुझे अपनी मनमर्ज़ियाँ ,
जो तुम्हारी नज़र में आज भी गलतियाँ हैं।
©®सुप्रिया सिंह
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कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय भास्कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
धन्यवाद आदरणीय.