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माँ

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तुम्हे आँधियों में सम्भाला है उसने, अपने भरोसे ही पाला है उसने, लुटा देगी सबकुछ, अदा क्या करोगे, "माँ " है वो साहब दया क्या करोगे। 🙏            -supriya singh

हौंसला

 मिली जो मुझे दुश्वारियों की गली ,
चल पड़ी जिन पर मै,करके सब कुछ फ़ना। 
कहते हैं वो कि खोनाऔर पाना ही तो है ज़िन्दगी, 
लगा मिल जाए शायद मुझे कुछ नया। 

वक़्त-ए-सितम पर जो मरहम करे ,
बिखरे ख्वाबों को दे मेरे फिर से सजा। 
जो चले संग मेरे दूर तक बस यूँ ही ,
ना रखे हिसाब गुज़रते वक़्त का। 
ढूंढा,देखा उसे हर तरफ,हर जगह,
पर ऐसा तो कोई ना  मिला सका। 

बैठे -बैठे यूँ ही बस ख़याल आ गया ,
मिली हैं जो फ़ुरसतें,उठा लूँ कुछ फ़ायदा।   
झांँक लूँ ख़ुद के भीतर,जो अब तक ना  किया,
जो झाँका तो,टूटा बिखरा-सा मिला सब वहाँ। 
 इक दफ़ा ,खुद सम्भलने की कोशिश न की ,
रोज़ अगली ही मै उठ खड़ा हो गई।  

छोड़ कर राह तकना, कर दिया अब शुरू 
काम खुद को सँवारने और बेहतर करने का,
उस दिन यूँ लगा कि हाँ ,था वो यहीं 
मेरे भीतर कहीं ,थी रही खोज जिसको यहाँ से वहाँ ,
था नया-सा वो बस ,कुछ बढ़ा सा वो बस 
कुछ और नहीं हौंसला था मेरा। 

©®सुप्रिया सिंह 









Comments

ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!
Supriya Singh said…



धन्यवाद आदरणीय.

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