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माँ

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तुम्हे आँधियों में सम्भाला है उसने, अपने भरोसे ही पाला है उसने, लुटा देगी सबकुछ, अदा क्या करोगे, "माँ " है वो साहब दया क्या करोगे। 🙏            -supriya singh

सही कौन

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इश्क

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मन मौन

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प्रेम भक्ति

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ऐसी लगी लगा दे मोहे ,रंग तेरे रंग जाऊँ प्रीत ओढ़ कर तेरी , सारा जग बिसरा ही जाऊँ। तू मै, मै तू  होकर जोगी कुछ ऐसे रम जाएंँ दरस तेरे हों देख मुझे कर, एक नज़र हो जाएँ। दरस करे जो दो देहिन  के, एक ही भेद बताए वह थी चरणों शीश नवाए वह, मंद-मंद मुस्काए।  प्रेम भक्ति में डूब तरूँ  जब ,पार तुझी में पाऊँ इक तेरी हो रह जाऊँ ,और ,बस तेरी धुनि लगाऊँ । जीऊँ  तुझमे  मगन रहूँ  तन छोड़ तुझे ही पाऊँ छोड़ जगत के माया बंधन, प्रवाह मुक्त  हो जाऊँ।  रंग तेरा ,यूँ  रहे संग ,के रंगीली कहलाऊँ बस रहे मुझे  सायुज्य तेरा, मैं पावन होती जाऊँ। ©® सुप्रिया सिंह  चित्र :गूगल साभार 

Yes,You Can👍

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You can live a life of happiness  A life full of joy and bliss , With a relaxed mind and calm soul You're able to reach your toughest goal , With cheerful heart and smile on a face You can cross any hurdle and win any race , Don't avoid your weaknesses and fears Deal with them, and it'll help you in life's every sphere ,                                    Reward yourself with love , for which you depend on others, Your inner self will blossom  with contentment flowers. © Supriya Singh

समझ

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खिलखिलाहट न जाने कब मुस्कराहट में बदल गई , मस्ती मज़ाक, न जाने कब अदब में बदल गए।  चँहकते दौड़ लगाना संभल कर चलना हो गया  अपने ख्यालों में खोए रहना बांवरापन सा हो गया।  जो कभी छोटे -छोटे से सपने थे , आज पर्वतों से ऊँचे और कठिन लगने लगे।  जहाँ बिन कहे ही ज़रूरतें पूरी हो जाया करती थीं  वहाँ ज़रा-ज़रा सी ख़्वाहिशों पे रोना मचने लगा।  बेफिक्र अपनी बात कह देना , अब सोच समझ कर बोलना हो गया.  न जाने कब सबके साथ प्यार से रहने की सीख , सोच समझ कर रिश्ते बनाने में बदल गई।  सब बेपरवाह ज़ाहिर कर देना , घुट- घुट कर  जीना हो गया।  बिन बताए मन के काम कर लेना , आज मन मसोस कर रह जाने सा हो गया है।  बस यूँ  ही खुद को गवाँते,भारी कीमत चुकाते, न जाने कब हम समझदार हो गए।                                ©सुप्रिया सिंह                 

हौंसला

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 मिली जो मुझे दुश्वारियों की गली , चल पड़ी जिन पर मै,करके सब कुछ फ़ना।  कहते हैं वो कि खोनाऔर पाना ही तो है ज़िन्दगी,  लगा मिल जाए शायद मुझे कुछ नया।  वक़्त-ए-सितम पर जो मरहम करे , बिखरे ख्वाबों को दे मेरे फिर से सजा।  जो चले संग मेरे दूर तक बस यूँ ही , ना रखे हिसाब गुज़रते वक़्त का।  ढूंढा,देखा उसे हर तरफ,हर जगह, पर ऐसा तो कोई ना  मिला सका।  बैठे -बैठे यूँ ही बस ख़याल आ गया , मिली हैं जो फ़ुरसतें,उठा लूँ कुछ फ़ायदा।    झांँक लूँ ख़ुद के भीतर,जो अब तक ना  किया, जो झाँका तो,टूटा बिखरा-सा मिला सब वहाँ।   इक दफ़ा ,खुद सम्भलने की कोशिश न की , रोज़ अगली ही मै उठ खड़ा हो गई।   छोड़ कर राह तकना, कर दिया अब शुरू  काम खुद को सँवारने और बेहतर करने का, उस दिन यूँ लगा कि हाँ ,था वो यहीं  मेरे भीतर कहीं ,थी रही खोज जिसको यहाँ से वहाँ , था नया-सा वो बस ,कुछ बढ़ा सा वो बस  कुछ और नहीं   हौंसला   था मेरा।  ©®सुप्रिया सिंह  ...