वो हँसता वो खिलखिलाता सा बचपन,बेबात ही मुस्कुराता वो बचपन , वो ड़र -ड़र के सीखने में,गिरता कभी लड़खड़ाता सा बचपन। रेत के इग्लू बनाता वो बचपन, मोहल्ले में हुल्लड़ लगाता वो बचपन , हरदम ही अपनी चलाता वो बचपन,न मानो तो रूठ जाता वो बचपन। बरसाती पानी के छींटे उड़ाता , कुछ मटमैला,कुछ भीगा-सा बचपन , माटी में खेले,और खाने को माटी, लोगों से नज़रें बचाता वो बचपन। तितली पकड़ने कि कोशिश में ,वो उड़ता दौड़ लगाता-सा बचपन, छुपम-छुपाई ,पकड़म-पकड़ाई मनमाने खेल खिलाता वो बचपन। त्योहारों की मिठाई देख ललचाता,मिलने कीआस में चक्कर लगता वो बचपन , छत से पानी के रंगीन गुब्बारे फोड़े,बचने को खुद झट से नीचे बैठ जाता वो बचपन। छुप-छुप के चीज़ें चुराता कभी,पकड़े जाने पर गुमसुम सा डाँट खाता वो बचपन , आँखों से दो मोती गिरा कुछ ही देर में,सब भूल जाता वो मस्तमौला सा बचपन। न माने किसी की वो ज़िद्दी सा बचपन ,अपनी ही चलाए वो पिद्दी सा बचपन , न रूठने ही दे नादानियों से अपनी ,निश्छल मनोभाव वाला वो बचपन। व...